उत्तर - यह तुम्हारे परिवार का मामला है इसमें मैं क्या कहूं मगर इतना जरूर कहूंगा कि अगर तुम अपने माता-पिता को घर में रखे रहते और अंत तक उनकी सेवा करते तो इससे तुम्हारा पुत्र संबंधी कर्तव्य पूरा हो जाता क्योंकि उन्होंने अबोध बचपन अवस्था में किया था । किसी भी बात पर तुम्हारा पालन पोषण कि, आंख मूंदकर विश्वास करने के बाजय उसकी सत्यता का पता लगाना चाहिए । अगर बात गलत निकली तो जीवन के अन्तिम स्वांस तक पछतावा होता रहता है |
पुत्र के प्रंति माँ-बाप की पीड़ा का एहसास माँ-बाप बनने पर ही होता है |तुम्हें मिलना चाहिए जाकर मनाना चाहिए और प्रयास करना चाहिए कि वे पुनः साथ रहें । उनका थोड़ा जीवन है और जो भी जरुरी सेवा हो उनकी अपना कर्तव्य समझकर तुम्हें करनी चाहिए । सेवा करने पर जो उनके हृदय से दुआयें निकलेंगी वो तुम्हें जीवन में शान्ति प्रदान करेंगी |
Question:- Swami ji! Due to differences of opinion in the family, parents started living separately. What to do ?
Answer - This is a matter of your family, what can I say in this but I would definitely say that if you had kept your parents at home and served them till the end, then your filial duty would have been fulfilled because they did it in innocent childhood. Was . Instead of blindly believing in any matter that is raised by you, you should find out its truth. If things turn out to be wrong then one continues to regret till the last breath of life.
The pain of parents towards their son is realized only after becoming parents. You should go and convince them and try to get them to live together again. They have a short life and whatever necessary service is required, you should consider it as your duty and do it. The blessings that come from their hearts after serving you will provide you peace in life. |