उत्तर:- जिस तरह से रोज-रोज घर में झाड़ू लगाई जाती है सफाई के लिए उसी प्रकार भजन, ध्यान, सुमिरन द्वारा कर्मों की धुलाई की जाती है। मलीन कर्मों के कारण जीवात्मा, मन, बुद्धि, चित्त सब गन्दे हो जाते हैं और साधन में रूचि नहीं रहती । बैठते भी हैं तो जैसे बेगार की तरह । इसीलिए सत्संगी को खान-पान छुआछूत का विशेष ध्यान रखना चाहिए। खान-पान के नियम टूट गए। लोग जूते चप्पल पहनकर चौके में जाने लगे। चौके की कोई सफाई नहीं रह गई।
पहले जो खाना चौके से बाहर आ जाता था अशुद्ध माना जाता था। फिर लोगों का खान-पान अशुद्ध हो गया | शाकाहारी रहते तो मन इन्द्रियां चलायमान नहीं होते । मांसाहारी लोगों के साथ खाना-पीना, उठना-बैठना होगा तो कर्मों का बोझ अपने ऊपर आएगा और ऐसे में मन निश्चित रूप से खराब होगा। और जब मन मोटा होगा खराब होगा तो भजन कोई नहीं कर सकता ।
इन सब बातों पर साधक को निगरानी रखनी चाहिए और फिर नियमित रूप .से एक घंटा समय भजन में दिया जाय तब मन धीरे-धीरें भजन में लगने लगेगा | गुरु की दया से जब अन्तर में बाजे गाने सुनाई देने लगेंगे तो मन अपनी बाहर की भाग दौड़ बन्द कर देगा ।
Question:- Swami ji! Don't feel like singing, what to do?
Answer:- Just as a broom is used every day to clean the house, in the same way the deeds are washed away through bhajan, meditation and remembrance. Due to impure deeds, the soul, mind, intellect and heart all become dirty and there is no interest in the means. Even if they sit, it is as if they are forced to sit. That is why a satsangi should take special care of eating habits and untouchability. Eating rules were broken. People started going to the square wearing shoes and slippers. There was no cleanliness left in the square.
Earlier, food that came out of the chowka was considered impure. Then people's eating habits became impure. If one were a vegetarian, the mind and senses would not be active. If you have to eat, drink, get up and sit with non-vegetarian people, then the burden of karma will come upon you and in such a situation the mind will definitely get disturbed. And when the mind is heavy and bad then no one can do bhajan.
The seeker should keep an eye on all these things and then regularly devote one hour to bhajan, then the mind will gradually start getting engaged in bhajan. By the grace of the Guru, when musical instruments and songs start being heard within, the mind will stop running around outside. |