उत्तर:- इस अभ्यास में उन्नति धीरे-धीरे होती है और काफी समय लगता है। ध्यान को शरीर से निकालकर तीसरे तिल तक पहुंचाना चींटी की चढ़ाई है जिसके लिए पक्का इरादा जरूरी है । ध्यान का निवास स्थान दोनों आंखों के पीछे तीसरे तिल में है लेकिन किरणें सारे शरीर में फैली हुई हैं। ये किरणें शरीर से बाहर भी पुत्र, स्त्री, धन दौलत, मकान आदि वस्तुओं में फैली हुई हैं।
इन किरणों का दायरा बहुत बड़ा है और इन्हें तीसरे तिल में वापस लाने में समय लगता है। जब ये ध्यान की किरणें तीसरे तिल में एकत्र होने लगती है यानी जब सिमटाव की क्रिया शुरू होती है तब साधक को एक चुभन सा दर्द अनुभव होता है। यह एकाग्रता की निशानी है। ऐसा मालूम होता है मानों चीटियां बदन पर चल रही हों ।
प्रकाश की किरणें यानी चेतन धारें जब शरीर से सिमट कर दोनों आंखों के पीछे आती हैं तो प्रकाश का समूह बन जाता है फिर जीवात्मा की आंख यानी नाम या आवाज दोनों तीसरे तिल में मौजूद रहते हैं। वे कभी भी उस केन्द्र से गायब नहीं होते। अगर एक क्षण के लिए भी इस केन्द्र से शब्द की लहर गायब हो जाय तो इन्सान जीवित नहीं रह सकता। प्रकाश और शब्द को पकड़ने के लिए साधक को तीसरे तिल में पहुंचना जरूरी है।
Question:- Swami ji! In meditation, sometimes creation, divine beings, rivers, mountains are visible and sometimes it becomes completely closed and darkness prevails.
Answer:- Progress in this practice happens slowly and takes a lot of time. Taking the meditation from the body to the third mole is like an ant's climb, for which strong intention is necessary. The abode of meditation is in the third mole behind both the eyes but the rays are spread all over the body. These rays also spread outside the body to things like son, wife, wealth, house etc.
The range of these rays is very large and it takes time to bring them back to the third mole. When these rays of meditation start gathering in the third mole, i.e. when the process of contraction starts, then the seeker experiences a pricking pain. This is a sign of concentration. It seems as if ants are walking on the body.
When the rays of light, i.e. conscious streams, shrink from the body and come behind both the eyes, a group of light is formed, then the eye of the soul, i.e. name or voice, both are present in the third mole. They never disappear from that centre. If the wave of words disappears from this center even for a moment, then man cannot survive. To catch the light and the word it is necessary for the seeker to reach the third mole. |