उत्तर:- अगर अपनी स्त्री से प्यार है तो प्रेम मोहब्बत के साथ रहते हुए गृहस्थी के काम-काज के साथ-साथ आत्म कल्याण के लिएं भजन भी करना चाहिए । अगर दूसरी स्त्री से प्रेम की बात है तो ऐसे ख्याल को मन में नहीं आने देना चाहिए । यदि आता भी है तो भाव का परिवर्तन जरुरी है। बहन, पुत्री, माँ की नजर से देखें अन्यथा आध्यात्मिक सफर अर्थात ध्यान भजन सुमिरन आप के लिए मुश्किल हो जाएगा।
हर वक्त चित्त उसी में बसा रहेगा। उच्च आध्यात्मिक मण्डलों में जाने वाले अथवा रूहानी सफर करने वाले महात्माओं ने औरतों को अपने से दूर रखा है जिससे उन्हें एकान्त मिले और वे अपना भजन बिना किसी बाधा के कर सकें । जो दृढ़ता संयम से रहते हैं वे घर में रहकर ही अच्छा भजन करते हैं।
भजन में जब नाम की, शब्द की यानी आवाज की चोट पड़ती है और अमृत पीने को मिलता है तो संसारी सभी बन्धन ढीले पड़ने लगते हैं । क्षणिक शरीर के सुख फीके हो जाते हैं। इसलिए भजन ही मन को विषय विकारों की तरफ भागने से रोकने का एक मात्र इलाज है।
Question:- Swami ji! If one falls in love with a woman, how should one control the mind?
Answer:- If you love your wife, then while living with love and affection, along with household chores, you should also do bhajan for self-welfare. If it is a matter of love for another woman, then such thoughts should not be allowed to enter the mind. Even if it comes, a change in attitude is necessary. Look at it from the perspective of sister, daughter, mother, otherwise the spiritual journey i.e. meditation, bhajan-sumiran will become difficult for you.
The mind will remain focused on it all the time. Mahatmas who go to higher spiritual circles or undertake spiritual journeys have kept women away from them so that they get solitude and can do their bhajan without any hindrance. Those who remain steadfast and restrained perform good bhajans while staying at home.
When one is touched by the name, the words i.e. the voice in the bhajan and one gets to drink the nectar, then all the worldly bonds start loosening. Momentary pleasures of the body fade away. Therefore, bhajan is the only cure to stop the mind from running towards sensual disorders. |