जय गुरु देव
समय का जगाया हुआ नाम जयगुरुदेव मुसीबत में बोलने से जान माल की रक्षा होगी ।
परम सन्त बाबा उमाकान्त जी महाराज, उज्जैन (मध्य प्रदेश)
साधक की बाहरी चीजो की इच्छा नहीं होनी चाहिए

Saadhak Kee Baaharee Cheejo Kee Ichchha Nahin Honee Chaahie

इच्छाओं का गुलाम साधक अन्तर में गुरु चरन अथवा ‘रामचरन’ अथवा कृष्ण ‘चरन’ प्रगट नहीं कर सकेगा ।

चूंकि साधक का हृदयस्थल पानी की तरह हिलोर मारता रहेगा इसका परिणाम यह होगा कि जब हृदय में स्थिरता न आई तो सुरत की दिव्य-दृष्टि नहीं खुलेगी। मन, चित्त चंचल होने से साधक अपनी दिव्य आंख अन्तर के तिल पर न जमा सकेगा । साधन करते समय साधक नियम से रहे तो साधक को अधिक लाभ होता है ।

साधक के अन्दर विश्वास की मात्रा जहां तक हो अधिक से अधिक लाभ होता है। जब साधक अन्तर में प्रकाश पाना शुरू कर देता है | उस वक्त सावधानी साधक को रखनी चाहिए क्योंकि प्रकाश के प्रगट होते ही अपने कर्मों को देखता है जहां कर्म खुद उसी समय प्रकाश को लोप करने की कोशिश करते हैं।

जैसे पानी यदि जमीन में भरा है और नीचे कीचड़ जमा है । कैसे ऊपर आवेगा ? जब हिलोर पंदा हो तब कीचड़ ऊपर आवे । कीचड़ ऊपर आने पर निर्मल पानी को गन्दा जरूर करेगा । इसी तरह साधक जब गुरु कृपा से साधना करता है अन्तर में प्रकाश पाने लगते हैं तो कर्मों के हिलोरों से प्रकाश गन्दा हो जाता है ।