गुरु मोहि अपना रूप दिखाओ..२
यह तो रूप धरा तुम सर्गुण, जीव उबार कराओ।
रूप तुम्हारा अगम अपारा, सोई अब दरसाओ।
देखूं रूप मगन होय बैठूं, अभय दान दिलवाओ।
यह भी रूप पियारा मोको, इसही से उसको समझाओ।
बिन इस रूप काज नही होई, क्यों कर वाही लखाओ।
ताते महिमा भारी इसकी, पर वह भी लखवाओ।
वह तो रूप सदा तुम धारो, या ते जीव जगाओ।
यह भी भेद सुना मै तुमसे, सुरत शब्द मारग नित गाओ।
शब्द रूप जो रूप तुम्हारा, वा मे अब भी सुरत पठाओ।
डरता रहूँ मौत और दुःख से, निर्भय कर अब मोहि छुड़ाओ।
गुरु मोहि अपना रूप दिखाओ..
|