हार गई मैं चलते-चलते, विरह कि मार्ग अति दुखदाई
एक पग-एक पग ढुलते-मूलते, ओर न छोर है इसका मिलते
क्षाँव नहीं कही धूप कड़क है, पतक्षड-पतक्षड सुखी हैं डालियाँ
पंक्षी है सुना वीरान गलियां, कैसे चलूँ अब प्यासी हैं अंखियाँ
काल सुनो हे कलिकाल हे भाई, एक अरज अब तुमसे आई
ऐसा कोई अब प्रयोजन कर दो, मृत्यु शैया पे मैं लेट जाऊं
नाम का सुमिरन करते दाता, वचन निभाते प्रेम विधाता
दरश को पाती हे सुख-सावन, लगन-यूगन कि प्यासी हैं अंखियाँ
एक दरश को सतगुरु झांकियाँ, आवे क्यों नही घट मोरे बसियाँ
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