झूला अजब पिया ने डारी,
झूलें सब जिव झारी ना ।
शब्द हिंड़ोला टंगा अधर में,
जाको वार न पारी ना ।
ब्रह्मा, विष्णु, ऋषि, मुनि झूलैं,
पावें डोर न डारी ना ।
पण्डित ज्ञानी भेद न जानें,
पढ़त पढ़त बुद्धि हारी ना ।
उलटि गगन कोई गुरुमुख झूलै,
पावें अगम अटारी ना ।
जहं गुरु स्वेत सिंहासन बैठे,
देखें लीला सारी ना ।
कोटिन भानु लजाय रोम एक,
ऐसी छटा निहारी ना ।
देखत छटा अटा प्रियतम की,
सुधि बुधि सुरत बिसारी ना ।
सदा बिहार करें वा घर में,
सन्त सुरत पिव प्यारी ना ।
जयगुरुदेव कृपा से अबकी,
हमरो आइल बारी ना ।
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