सतसंग की गंगा बहती है,
गुरुदेव तुम्हारे चरणों में ।
फल मिलता है उस तीरथ का,
कल्याण तुम्हारे चरणों में ।। 1 ।।
मैं जनम जनम तक भरमा हूँ
तब शरण आपकी आया हूँ ।
इन भूले भटके जीवों का
कल्याण तुम्हारे चरणों में ।। 2 ।।
दुखियों का दुख मिटाते हो,
फिर दिव्य दृष्टि परखाते हो ।
सब आवागमन मिटाते हो,
है मोक्ष तुम्हारे चरणों में ।। 3 ।।
एक बार जो दर्शन पाता हूं,
बस आपका ही हो जाता हूँ
क्या गुप्त तुम्हारी प्रीति है,
हैं धन्य तुम्हारे चरणों में ।। 4 ।।
मैं जनम का भूला शरण पड़ा,
तब आय के तुम्हरे द्वारे खड़ा ।
काटो जन्ममरण बंन्धन मेरा,
निर्मल तुम्हारे चरणों में ।। 5 ।।
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