Jaygurudev infinite ancient, Jai Aadi Prabhu Satya Sanatan | JaiGuruDev Chalesa
जयगुरुदेव अनंत पुरातन,
जय अनादि प्रभु सत्य सनातन।
चरण आश्रय हमको दीजे,
बुद्धि शुद्ध हमारी कीजै।।
तुम अनाथ को करहुं सनाथा,
अशरण शरण दीन के नाथा।
नाथ कृपा सेवक पर कीजै, मन दौड़ रोक प्रभु दीजै।।
काल जाल से हमें छुड़ाओ, सत्य धाम की राह बताओ।
सभी विकार मिटें प्रभु मन के, अंतःकरण शुद्ध होय जन के।।
अगुण सगुण का भेद मिटाते,
अगम पथ सब सुगम कराते।
सुरत शब्द को आप जगाओ,
ब्रह्मादिक सब भेद भगाओ।।
बुरे कर्म से हमें बचाओ, पापी जन को शुद्ध बनाओ।
करहुं अनुग्रह अब तो स्वामी, शरण पड़े हूँ अन्तर्यामी।।
जयगुरुदेव ह्रदय से रटते, सुखी होय संकट सब कटते।।
गुरु पद भक्ति रहे उर माही, तिनके संशय सकल नसाहि।।
गहरा सागर यह संसारा, अगम अविद्या भंवर अपारा।
में अन्विज्ञ न जानहुँ तरना। ताते प्रभु की लीन्ही शरणा।।
तुम बिन हे गुरुदेव कृपाला, काटे को भव जाल कराला।
तुम घट घट में करहुं निवासा, जानी सके कोई तुमरो दासा।।
दिव्य नेत्र को तुम दिखलाओ,
अलख, अगम की राह बताओ।।
तत्व नाम प्रभु अकथ तुम्हारे, अंधकार में करत उजारे।।
मैं अज्ञानी फिरहूँ भुलाना, प्रभु प्रभाव कछु मैं नही जाना।
चित न धरो प्रभु अवगुन मोरे,
शरण पड़ी में करहु निहोरे।।
जय जय जय गुरुदेव अनामी,
दीन बन्धु प्रभु सबके स्वामी।
सत्यलोक के तुम सैलानी,
महिमा अमित न जाय बखानी।
ध्यान धरे चरनन चित लावे, मन की दौड़ तुरत रुक जावे।
जा पर कृपा दृष्टि होई जावे, भवसागर से वो तर जावे।।
काल गति के तुम हो ज्ञाता, परम दयाल सदा जन त्राता।
ऐसी कृपा करहुं गुरुदेवा, गऊ संत की होवे सेवा।
देश भक्त होय सब नर नारी, धर्म कर्म रत शाकाहारी।।
तुम सर्वज्ञ सदा अविकारी, क्षमा सिंधु सबके हितकारी।
कुछ कुछ महिमा जानत ज्ञानी, मैं क्या जानूं पामर प्राणी।।
क्षमा करहुं प्रभु चूक हमारी, त्राहि त्राहि हम शरण तुम्हारी।।
जयगुरुदेव दास हितकारी, चरण धयान में नव दुत्कारी।
तुमरे पग नख ध्यान लगाऊं, उज्ज्वल किरन रोशनी पाऊं।।
नाम रूप सब अकथ अनादि, जाप करे परमारथ वादी।
अकथ अनादि अनुपम जोई, तुम्हारी कृपा सुलभ सब होई।।
सुमिरन करते ध्यान लगाते, खेल अलौकिक आप दिखाते।
व्यापक ब्रह्म अलख ज जोई, जयगुरुदेव लखाते सोई।।
सब प्रकाश रूप गुरुदेवा, भव सागर तरनी के खेवा।
त्राहि त्राहि में करहुं पुकारा, पंच जनित प्रभु हरहुं विकारा।
बार बार यह विनय हमारी, रहे याद हर वक्त तुम्हारी।
दास पुकारत आरत भारी, हरि चरणन लई शरण तुम्हारी।।
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