जय गुरु देव
समय का जगाया हुआ नाम जयगुरुदेव मुसीबत में बोलने से जान माल की रक्षा होगी ।
परम सन्त बाबा उमाकान्त जी महाराज, उज्जैन (मध्य प्रदेश)
परम् पूज्य महाराज जी (बाबा उमाकान्त जी महाराज) का आदेश है हर सत्संगी भाई-बहन को कम से कम 2-3 प्रार्थनाएँ जरूर याद होनी चाहियें

जयगुरुदेव चालीसा चौपाई

Jaigurudev Chalisa Chopayee

ॐ नमो गुरुदेव दयाला, भक्तजनों के हो प्रतिपाला ।
पर उपकार धरो अवतारा, डूबत जग में हंस1 उबारा ।
तेरा दरश करें बड़भागी, जिनकी लगन हरि से लागी ।
नाम जहाज तेरा सुखदाई, धारे जीव पार हो जाई ।।

पारब्रह्म गुरु हैं अविनाशी, शुद्ध स्वरूप सदा सुखराशी ।
गुरु समान दाता कोई नाहीं, राजा प्रजा सब आस लगायी ।
गुरु सन्मुख जब जीव हो जावे, कोटि कल्प के पाप नसावे ।
जिन पर कृपा गुरु की होई, उनको कमी रहे नहीं कोई ।
हिरदय में गुरुदेव को धारे, गुरु उसका हैं जन्म सँवारें ।

राम-लखन गुरु सेवा जानी, विश्व-विजयी हुए महाज्ञानी ।
कृष्ण गुरु की आज्ञा धारी, स्वयं जो पारब्रह्म अवतारी ।
सद्गुरु कृपा अति है भारी, नारद की चौरासी टारी ।
कठिन तपस्या करें शुकदेव, गुरु बिना नहीं पाया भेद ।

गुरु मिले जब जनक विदेही, आतमज्ञान महा सुख लेही ।
व्यास, वसिष्ठ मर्म गुरु जानी, सकल शास्त्र के भये अति ज्ञानी ।
अनंत ऋषि मुनि अवतारा, सद्गुरु चरण-कमल चित धारा ।
सद्गुरु नाम जो हृदय धारे, कोटि कल्प के पाप निवारे ।

सद्गुरु सेवा उर में धारे, इक्कीस पीढ़ी अपनी वो तारे ।
पूर्वजन्म की तपस्या जागे, गुरु सेवा में तब मन लागे ।
सद्गुरु-सेवा सब सुख होवे, जनम अकारथ क्यों है खोवे ।
सद्गुरु सेवा बिरला जाने, मूरख बात नहीं पहिचाने ।

सद्गुरु नाम जपो दिन-राती, जन्म-जन्म का है यह साथी।
अन्न-धन लक्ष्मी जो सुख चाहे, गुरु सेवा में ध्यान लगावे ।
गुरुकृपा सब विघ्न विनाशी, मिटे भरम आतम परकाशी ।
पूर्व पुण्य उदय सब होवे, मन अपना सद्गुरु में खोवे ।

गुरु सेवा में विघ्न पड़ावे, उनका कुल नरकों में जावे ।
गुरु सेवा से विमुख जो रहता, यम की मार सदा वह सहता ।
गुरु विमुख भोगे दुःख भारी, परमारथ का नहीं अधिकारी ।
गुरु विमुख को नरक न ठौर, बातें करो चाहे लाख करोड़ ।

गुरु का द्रोही सबसे बूरा, उसका काम होवे नहीं पूरा ।
जो सद्गुरु का लेवे नाम, वो ही पावे अचल आराम ।।
सभी संत नाम से तरिया, निगुरा नाम बिना ही मरिया ।
यम का दूत दूर ही भागे, जिसका मन सद्गुरु में लागे ।

भूत, पिशाच निकट नहीं आवे, गुरुमंत्र जो निशदिन ध्यावे ।
जो सद्गुरु की सेवा करते, डाकन-शाकन सब हैं डरते ।।
जंतर-मंतर, जादू-टोना, गुरु भक्त के कुछ नहीं होना ।
गुरू भक्त की महिमा भारी, क्या समझे निगुरा नर-नारी ।

गुरु भक्त पर सद्गुरु बूठे, धरमराज का लेखा छूटे ।
गुरु भक्त निज रूप ही चाहे, गुरु मार्ग से लक्ष्य को पावे ।
गुरु भक्त सबके सिर ताज, उनका सब देवों पर राज ।