1. हिन्दू कहें मोहि राम पियारा, तुर्क कहें रहमाना, आपस में दोउ लड़ी-लड़ी मरे, मरम न जाना कोई।
अर्थ – कबीर दास जी कहते हैं कि हिन्दुओं को राम प्यारा है और मुसलमानों को रहमान। इसी बात पर वे आपस में झगड़ते रहते है लेकिन सच्चाई को नहीं जान पाते।
2. काल करे सो आज कर, आज करे सो अब, पल में प्रलय होएगी, बहुरि करेगो कब।
अर्थ – कबीर दास जी कहते हैं कि जो कल करना है उसे आज करो और जो आज करना है उसे अभी करो। जीवन बहुत छोटा होता है अगर पल भर में समाप्त हो गया तो क्या करोगे।
3. धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय, माली सींचे सौ घडा, ऋतू आए फल होए।
अर्थ – कबीर दास जी कहते हैं कि हमेशा धैर्य से काम लेना चाहिए। अगर माली एक दिन में सौ घड़े भी सींच लेगा तो भी फल ऋतू आने पर ही लगेगा।
4. निंदक नियरे राखिए, आंगन कुटी छवाय, बिना पानी, साबुन बिना, निर्माण करे सुभाय।
अर्थ – कबीरदास जी खाते हैं कि निंदा करने वाले व्यक्तियों को अपने पास रखना चाहिए क्योंकि ऐसे व्यक्ति बिना पानी और साबुन के हमारे स्वभाव को स्वच्छ कर देते है।
5. मांगन मरण समान है, मति मांगो कोई भीख, मांगन ते मरना भला, यह सतगुरु की सीख।
अर्थ – कबीरदास जी कहते हैं कि मांगना मरने के समान है इसलिए कभी भी किसी से कुछ मत मांगो।
6. साईं इतना दीजिए, जा में कुटुम समाय, मैं भी भूखा न रहूँ, साधू न भूखा जाए।
अर्थ – कबीरदास जी कहते हैं कि हे परमात्मा तुम मुझे केवल इतना दो कि जिसमें मेरा गुजारा चल जाए। मैं भी भूखा न रहूँ और अतिथि भी भूखे वापस न जाए।
7. दुःख में सुमिरन सब करे, सुख में करै न कोय, जो सुख में सुमिरन करे, दुःख काहे को होय।
अर्थ – कबीरदास जी कहते हैं कि सुख में भगवान को कोई याद नहीं करता लेकिन दुःख में सभी भगवान से प्रर्थन करते हैं। अगर सुख में भगवान को याद किया जाए तो दुःख क्यों होगा।
8. तिनका कबहुँ न निंदिये, जो पाँवन तर होय, कबहुँ उड़ी आँखिन पड़े, तो पीर घनेरी होय।
अर्थ – कबीरदास जी कहते हैं कि कभी भी पैर में आपने वाले तिनके की भी निंदा नहीं करनी चाहिए क्योंकि अगर वही तिनका आँख में चला जाए तो बहुत पीड़ा होगी।
9. साधू भूखा भाव का, धन का भूखा नाहिं, धन का भूखा जी फिरै, सो तो साधू नाहिं।
अर्थ – कबीरदास जी कहते हैं कि साधू हमेशा करुना और प्रेम का भूखा होता और कभी भी धन का भूखा नहीं होता। और जो धन का भूखा होता है वह साधू नहीं हो सकता।
10. माला फेरत जग भय, फिर न मन का फेर, कर का मनका डार दे, मन का मनका फेर।
अर्थ – कबीरदास जी कहते हैं कि कुछ लोग वर्षों तक हाथ में माला लेकर फेरते है लेकी उनका मन नहीं बदलता अथार्त उनका मन अटी और प्रेम की ओर नहीं जाता। ऐसे व्यक्तियों को माला छोड़कर अपने मन को बदलना चाहिए और सच्चाई के रास्ते पर चलना चाहिए।
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